Ghazal: असर करने लगी है
बरसों पहले दी थी जो वो बद दुआ अब असर करने लगी है
किसी की नाराज़गी किसी की बेरुखी हममें घर करने लगी है
तुम ये देखते तो यकीनन रो पड़ते ठीक मेरी ही तरह के कैसे
मेरी गुजरी हुई रातें मेरे आने वाले कल की फिकर करने लगी है
वक्त ने कभी मेरे ज़ख्म मांगे थे मुझसे उन्हें भरने के लिए अब
देखा तो उनमें मुझसी सैकड़ों...
किसी की नाराज़गी किसी की बेरुखी हममें घर करने लगी है
तुम ये देखते तो यकीनन रो पड़ते ठीक मेरी ही तरह के कैसे
मेरी गुजरी हुई रातें मेरे आने वाले कल की फिकर करने लगी है
वक्त ने कभी मेरे ज़ख्म मांगे थे मुझसे उन्हें भरने के लिए अब
देखा तो उनमें मुझसी सैकड़ों...