...

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वीर अभिमन्यु
पिता हमारे दूर पड़े थे , रन कौशल में को शूर बड़े थे।
नियति से मजबूर बड़े थे, कौरवों की रणनीति से परे थे।

गुरु द्रोण की कुटिल नीति थी , युद्ध जीतने की प्रीत चढ़ी थी।
पांडूराज युधिष्ठिर को बंदी करने की ये रणनीति बनी थी।


तो गुरुद्रोण की थी कुटिल नीति से, कैसे मुंह फेरता मैं,
खुद अपने ही तात श्री को क्या, बंदी बनते देख ता मैं।

न करता युद्ध अगर रण में मैं , तो आखिर क्या ही करता मैं।
क्या तात श्री को बंदी बनने देता , या मरते दम तक लड़ता मैं।

जो बन जाते तात बंदी हमारे, तो सबको कैसे मुंह दिखलाता मैं।
सारे मिलकर ताने देते, अब किसको क्या ही बतलाता मैं।

चूड़ी का ताना सुन सुनकर, पूरी जिंदगी कैसे बिताता मैं।
न लड़ता रणभूमि में तो, कैसे अपना...