...

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प्रकृति प्रेम
नभ मेघ धरा धर कांप उठी,
नित सोई चपला चित जाग उठी,
हुए मौन विहग, खग लुपित हुए,
झर-झर तरिणी हो उद्विग्न उठी,
पवमान वेगमय द्रुम कांप उठे,
सर-सर करते अम्बर चूम उठे,
ऋतु रौद्र रूप में नाच उठी,
मन में अभिलाषा जाग उठी,
देखो! मयूर एक बोल उठा,
कर नृत्य वो सब में झूम उठा,
गरजा - गरजा एक तड़ित वेग,
बरसा - बरसा...