...

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दो कप चाय
इक चुटकी कहो
की इक घूंट...
जो भी रहा प्रखर रहा,
घना कोहरा
जो छाया रहा कप के साथ
जहां से
रजनीगंधा नज़र आते रहे
वहीं कृष्ण उष्ण
तेज़ अश्रुओं में
सिमट कर
अब लम्हा लम्हा
पिघल रहा था,
धुंद फीकी पड़ रही थी
शाम गुज़र रही थी
स्पष्ट हो रहे थे
रिश्ते !!
कुछ यात्राएं
बीच रास्ते सिमट गई थी,
रहस्यमय रहा
कोई आगे चलकर कैसे
दूर निकल गया
और कोई
शुन्यवकाश साधे
ठहर गया
चाय के दो कप के साथ...

© Mishty_miss_tea