ग़म -ए-हयात
ये कहां ले के आई है ग़म-ए-हयात मुझे
तारीक रात है दिखती न रोशनाई है
भीड़ बहुत है लोगों की इस ज़माने में
अपना कोई नहीं तन्हाई ही तन्हाई है
रंजिशें इस क़दर बढ़ने लगी हैं अब तो
जीना मुहाल हुआ जान पे...
तारीक रात है दिखती न रोशनाई है
भीड़ बहुत है लोगों की इस ज़माने में
अपना कोई नहीं तन्हाई ही तन्हाई है
रंजिशें इस क़दर बढ़ने लगी हैं अब तो
जीना मुहाल हुआ जान पे...