मन मौन व्रत कर
#अपराध
मन मौन व्रत कर अपराध करता है,
किस भांति देखो आघात करता है।
व्यंग पर गंभीरता का प्रहार करता है,
किस भांति देखो उपहास करता है।
मन मौन व्रत कर परखता है,
किस भांति देखो सोचता है।
धर्य से विचार का आकलन करता है।
किस भांति देखो माप दंड करता है।
मन मौन व्रत कर निर्भिक रहता है,
किस भांति देखो निश्चिंत रहता है।
गहनता से सोच विचार करता है,
किस भांति देखो निर्णय करता है।
मन मौन व्रत कर विचरण करता है,
किस भांति देखो दुनिया घुमा करता है।
पल में सदियां नाप लिया करता है,
किस भांति देखो जमीं आसमां एक करता है।
मन मौन व्रत कर रोता मुस्कुराता है,
किस भांति देखो अपना दर्द छुपता है।
मन मौन व्रत कर अंदर ही अंदर घुटता है,
किस भांति देखो पल में हजार बार टूटता है।
मन मौन व्रत कर अपराध करता है,
किस भांति देखो आघात करता है।
व्यंग पर गंभीरता का प्रहार करता है,
किस भांति देखो उपहास करता है।
मन मौन व्रत कर परखता है,
किस भांति देखो सोचता है।
धर्य से विचार का आकलन करता है।
किस भांति देखो माप दंड करता है।
मन मौन व्रत कर निर्भिक रहता है,
किस भांति देखो निश्चिंत रहता है।
गहनता से सोच विचार करता है,
किस भांति देखो निर्णय करता है।
मन मौन व्रत कर विचरण करता है,
किस भांति देखो दुनिया घुमा करता है।
पल में सदियां नाप लिया करता है,
किस भांति देखो जमीं आसमां एक करता है।
मन मौन व्रत कर रोता मुस्कुराता है,
किस भांति देखो अपना दर्द छुपता है।
मन मौन व्रत कर अंदर ही अंदर घुटता है,
किस भांति देखो पल में हजार बार टूटता है।