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और समक्ष एक नार है !!!
तुम्हारी हदों से परे है, ये विचार त्याग दो |
इतनी ही घुटन है, तो संसार त्याग दो |
गीली मिट्टी है! जैसे चाहोगे ढल जाएगी |
थोड़ी सी सेहेमेगी, और फिर संभल जाएगी |
कहाँ जा सकती है कहाँ नहीं,
सब तय होना चाहिए!
आँखों में शर्म,
मन में भय होना चाहिए !
'कमजोर थी ' 'कमजोर है '
बस यही सार देना |
और कुछ बच जाए तो तानों से मार देना |
कमजोर नहीं थी,
मैं इतिहास पढ़ सकती हूँ |
कमजोर नहीं कहलाऊँगी,
मैं इतिहास गढ़ सकती हूँ |
संभल के जनाब,
इक्कीसवी सदी है और समक्ष एक नार है !
सज्जा के पुष्प आज अग्नि पर सवार है...
सोच ले ज़माना की बदलना पड़ेगा !
अग्नि को जो स्पर्शा तो जलना पड़ेगा !!
मैं सीमा में रही - ज़माना सीमाओं पार गया,
कभी अग्नि से तोला तो कभी जुए में हार गया |
कुछ नहीं था ये, मेरे मौन का व्यापार था ,
आँगन मौन थे, मौन ये संसार था |
आक्रोश के अंगार अब आँखों में नहीं समाएँगे..
द्रौपदी के मान को अब केशव नहीं बचाएँगे ..
सीता ने जो बाण छुआ तो तीर चलाए जाएँगे ..
नारी के कोमल कर्म अब कमजोर नहीं कहलाएँगे|
अस्तित्व में जो आयी हूँ तो असर कुछ यूँ जाएगा,
जमाना भले न बदले 'जमाना है', गुजर जाएगा |
सीता नहीं हूँ मैं ,
जो प्रश्न उठेंगे और धरती में समां जाऊँगी |
मैं तो धधकती ज्वाला हूँ,
अगर खुद जली तो अयोध्या भी जला जाऊँगी |
भाँप तक नही दिखेगी
आप रूढ़ियों में यूँ उबल जाएंगे |
कहा था ना,
अग्नि को जो स्पर्शा तो जल जाएंगे !!!
आक्रोश है! विद्रोह है! जिद है! तकरार है!
संभल के जनाब ,
इक्कीसवी सदी है और समक्ष एक नार है !!!
- कोमल ' विनोद '
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