...

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और समक्ष एक नार है !!!



तुम्हारी हदों से परे है, ये विचार त्याग दो |
इतनी ही घुटन है, तो संसार त्याग दो |

गीली मिट्टी है! जैसे चाहोगे ढल जाएगी |
थोड़ी सी सेहेमेगी, और फिर संभल जाएगी |

कहाँ जा सकती है कहाँ नहीं,
सब तय होना चाहिए!
आँखों में शर्म,
मन में भय होना चाहिए !

'कमजोर थी ' 'कमजोर है '
बस यही सार देना |
और कुछ बच जाए तो तानों से मार देना |

कमजोर नहीं थी,
मैं इतिहास पढ़ सकती हूँ |
कमजोर नहीं कहलाऊँगी,
मैं इतिहास गढ़ सकती हूँ |

संभल के जनाब,
इक्कीसवी सदी है और समक्ष एक नार है !
सज्जा के पुष्प आज अग्नि पर सवार है...
सोच ले ज़माना की बदलना पड़ेगा !
अग्नि को...