...

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Journey of life... On the Earth.
जब घर से निकलती हूं..
अकसर कई लोग मुझे देख खुश हो जाते हैं
हालाँकि उनकी ख़ुशी का कारण भी मै समझती हुं...
मग़र अक्सर लोग मुझे ये कहते हैं
के आपको बहुत दुआ मिलेंगी
पहले पहले तो मैं महज़ मुस्कुरा दिया करती थी
मग़र...
अब ये मैं इतना सुन चुकी हूं ये के...
कह देती..
"मैं करूँगी क्या उन दुआओं का..
यदि मिलती भी हैं तो उन्हीं वजहों को वापिस मिल जाए जिनके कारण ये मुझे मिलती हैं...
यही मेरे लिए दुआ हैं"

मैं भला क्या करूँगी इन दुआओं का खुदके लिए..!?
मेरे पास ना उतना जीवन हैं..
ना ही जनम..
इन दुआओं को भरने के लिए..
ना मेरी अपनी कोई आकांशा..
ना ही कुछ पाने की चाह मेरी
मैं भला क्या करूँगी इन दुआओं का?
और यूं भी
मैं कुछ भी कभी
कुछ पाने की चाह से नहीं
करती..
मैं जो महसूस करती हूं
बस उसी को follow करती हूं...
पिछेले वर्ष एक uncle बोले
बेटा तुमको देख के हम लोग सुखी हो जाते हैं...
बात उन्होंने बड़ी कहीं थी..!
हालाँकि मेरे कर्म से उनका क्या लेना देना..?
मग़र आपको अच्छा करते देख भी लोग
खुश होते हैं..
तो इससे सुंदर और क्या बात हो सकती हैं 😊
भले ना वे उस कृत मे शामिल नहीं..
मग़र कभी कभी ये भी बहुत होता हैं😇..
मैं मुस्कुरा दी..
(मग़र मन ही मन बोली ..कोई जाके मेरे मम्मी पापा को बता दो😝😂😂)
और ऐसा भी नहीं हैं के ये बड़े भले लोग हैं,
या perfections से भरे लोग हैं..
या इनमे कोई त्रुटि नहीं..
नहीं...
मेरी दिक्कत ये हैं के
व्यक्ति मुझे scan हो जाता हैं..
भला बुरा मुझे सब दिखता हैं
उनके बुरे को मैं ignore नहीं कर सकती..
मग़र सम्मान मुझे
उनके भीतर के भले का ही करना होता हैं..
मग़र क्या ये खूब नहीं..
के आपके कोई अच्छा कृत
किसी के भीतर के अच्छे को सामने ले आए.. 😊
क्योंकि मुझमें वे मुझे थोड़ी देखते हैं..
मैं तो आईना हूं..
अपने ही अधूरे स्वरूप को देखते हैं...
और यही कारण हैं
मैं maximum अच्छे के प्रचार को
प्राथमिकता देने मे मानती हूं...
बजाए के बुराई के बुराई की आलोचना को
प्राथमिकता देने के...
हाँ..
कभी कभी बुराई को भी आईना दिखाना पड़ता हैं... किंतु हमें बुराई की आलोचना को कम से कम प्राथमिकता देनी चाहिए...
जब ज़रूरी हो तो action अवश्य लेना चाहिए..
किंतु अच्छे और अच्छाई को
promote करने पर अधिक
ध्यान होना चाहिए..
जगत को हम जो देंगे
वही हमारे पास लौटेगा
may be भिन्न स्वरूप मे
जगत मे हम जो देखेंगे
वही हमको दिखेगा..
क्योंकि जब हम किसी को अच्छा करते देखते हैं
फ़िर भले हम उस कृत मे शामिल नहीं भी हैं
यदि हम allow करते हैं
consciously या subconsciously
तो हमारे भीतर के भी
वे निकटम बिंदु activate होने लगते हैं..
हम उस अच्छे को किसी ना किसी रूप मे खिचने लगते हैं
तभी तो सत- संग कहा गया हैं..
स्तय के संग..
क्योंकि जिसके संग आप रहेंगे
उसके गुणों को आप खिचने लगेंगे..
प्रोत्साहन अथवा inspiration हैं क्या.. ?
किसी और के कृत ने
आपके भीतर के spirit को छु लिया
या कहों उसे जगा दिया.. 😊
so you became In-spirit...
और वही जब कभी
जब आप किसी के बुराई
या बुरे कृत मे केंद्रित रहते हैं...
या उसकी आलोचना मे केंद्रित रहते हैं..
तो हमें बोध नहीं होता
मग़र उसी बुराई
अथवा उस बुरे से जुड़ी
समस्त ऊर्जा को हम बड़ी तीव्रता से
हम अपनी और खींचते हैं...
इसीलिए
यदि ..
ऊर्जा के जगत को यदि
भलीभाति ना जानते हो..
तो बुरे व बुराई की बुराई छोड़ो
उसकी आलोचना भी बचना चाहिए.
यदि आप उस ऊर्जा को
handle ना कर सकते हो।
तब जीवन मे बहुत कुछ
अकारण आप निर्मित कर लेते हैं..
और आपको लगता हैं
आपने किसी का क्या बिगाडा था कभी...
आपने बिगाड़ा कुछ नहीं...
महज़ आप सजग नहीं रहे...
यथार्थ ज़िंदगी बारीकियों मे हैं..
मैं यह नहीं कह रही के हमे बुराई
के खिलाफ़ नहीं खड़ा होना चाहिए
नहीं मेरा महज़ इतना कहना हैं हमें बुराई के खिलाफ़ नहीं सत्य के साथ खड़े होना चाहिए..
तब आप
अपने बल को अधिक पाएंगे..
क्योंकि तब आपकी ऊर्जा सत्य मे केंद्रित होगी..
और सत्य शिव हैं और शिव के साथ शक्ति ..
निश्चित ही बुराई के खिलाफ़
आपको खड़े होना चाहिए
किंतु आपके ध्यान का केंद्र उसकी बुराई न हो...
अपनी सच्चाई हो..
वरना आप कमज़ोर हो जाएंगे...
क्योंकि आप उसकी बुराई से निश्चित ही प्रभावित होंगे..
इसीलिए दीप कहती हैं..
स्मरण रहे किसी की नफ़रत तुम्हारे प्रेम से बलवान ना हों..
तुम अपने प्रेम से किसी की नरफ़त खत्म कर सको ना सको..
कोई नफ़रत तुम्हारे भीतर के प्रेम को ना खत्म करदे..
तब वो नफ़रत तुम पर हावी हो जाएगा..
और तुम हार जाओगे नफ़रति व्यक्ति को हराकर भी..
वो नफ़रत जीत जाएगा..
तुम वान भी चलाओ,
तलवार भी चलाओ..
रण के मैदान पे भी उतरो
ज़रूरत पड़े तो..
महाभारत ही रच दो...
किंतु... तब भी तुमहारे भीतर महज़ प्रेम ही स्थित हो जाए।..
नफ़रत का अंश भर भी तुमहे छूने ना पाए..
प्यार के लिए लड़ो..
मग़र नफ़रत से नफ़रत ना करने लग जाओं..

खैर ये तो बात से बात निकल आई..
फ़िर जब कभी उस तरफ़ जाती हूं..
वो Aunty कहते हैं
"ये उपर वाली बहन जी तो जब भी इस लड़की को देखती हैं हर बार यही कहती हैं...

'ये लड़की देखना बहुत सुखी रहेगी...!'"

और मुझे समझ ही नहीं आता
मैं उनकी बातों पर क्या react करूं..
मैं महज़ मुस्कुरा देती हूं... 😊..
मग़र मैं समझ नहीं पाती वे ऐसा क्यों कहते हैं..
क्योंकि मुझे ऐसा नहीं लगता
के मैं कुछ बड़ा या खास कर रही हूं
वही तो कर रही हूं
जो करना चाहिए..
जो यथार्थ मनुष्य जीवन का धर्म हैं
और हकीकत कहूं तो...
जो कर सकती हूं
और जो करना चाहती हूं..
उसका यह 0.00000000000001℅ भी
नहीं हैं..
और कितने ही लोग
मुझसे इस मामले मे कितने आगे हैं,
जिनकी मैं ऋणी हूं...
मैं तो कुछ भी नहीं कर रही..
उस पेमाने से तो...
मग़र फ़िर भी जानें क्यों
ये मुझे
इतनी दुआएं क्यों देते हैं!?
मेरे प्रति ऐसा भाव क्यों रखते हैं...!?
मुझे आश्चर्य होता हैं..
हालाँकि मेरे भीतर का अस्तित्व
reactiveless रहता हैं..
उसे ना कोई ख़ुशी होती हैं
ना दुख होता हैं..
क्योंकि
उसे कोई कुछ बुरा भला भी कह जाता हैं
तो उसे फर्क नहीं पड़ता...
इसीलिए
कोई भला बोलता हैं
तब भी वो सिर नहीं चढ़ता हैं...
हालाँकि ज़रा ख़ुशी मुझे ज़रूर होती हैं.. 😊
के कोई किसी के लिए ऐसा कह पाया..
वो भी एक लड़की के लिए..
जिनसे उनका कोई मतलव नहीं..
दूसरा के
ये उनके भीतर की अच्छाई हैं
जो वो मुझमें वो देख रहे हैं
या देख पा रहे हैं...
जो passively वे ख़ुद हैं
और actively मुझमें देख वे खुश हो रहे हैं..
हकीकत मे
वे अपने ही स्वरूप को
जिन्हें वे ख़ुद मे खोज नहीं पाते
मुझमें देख वे खुश होते हैं
क्योंकि हम वही देख सकते हैं
जो हम होते हैं..
या हमारी आत्मा होना चाहती हैं। 😊
कुछ दिन पहले...
वहीं एक दूसरे uncle
वही नीचे के floor वाली aunty के husband
वो uncle भी कई बार मुझे देख बहुत खुश होते हैं 😊
कुछ दिन पहले कहते हैं..
बेटा तेरी शादी नहीं हुई ना...?
"तुझे देखना बहुत अच्छा पति मिलेगा..
वो सब देख रहा हैं..
वो तो हैं ही हैं और ये मेरा भी आशीर्वाद हैं.. "
(inside me like🙄)
मैं क्या कहती,
मैंने बस मुस्कुरा दिया 😊...
आज फ़िर जब वो uncle मिले
उन्होंने वही बात दोहराई.
"मैंने उस दिन भी कहा ना तेरेको
तु देखना.. मेरी ये बात याद रखना... और मेरा तो आशीर्वाद हैं ही हैं.. "

मैंने फ़िर मुस्कुरा दिया 😊..उनकी बात के सम्मान मे ..
और फ़िर घर लौट आई...
मेरे पास इस बात पर मुस्कुराने के सिवा कोई उत्तर भी नही।
मग़र अब घर से जब निकलती हूं
ये intention दे निकलती हूं..
भई जब मैं निकलू कोई घर के बाहर ना हो..
मैं अपना काम कर तुरंत घर लौट आऊं..
किसी के नज़र मे ना आऊं..
क्या हैं..
लोग आपके साथ अच्छा व्यहवार कर आपको बांध लेते हैं...
आप उनके ऋणी हो जाते हो..
कुछ नहीं तो आप उनके संग
मुस्कुराने को तो बाध्य हो..
अच्छाई बंधन हैं..
इसीलिए दीप अक्सर कहती हैं
जब कोई तुम्हारे साथ दूरव्यहवार करे तो..
अथवा दुख पहुँचाए तो उसे धन्यवाद दे देना...
पूरे हृदय से धन्यवाद देना..
क्योंकि वह आपको मुक्त कर देता हैं
वह बांधता नहीं..
उसके प्रति बुरा भाव
रखने की भी ज़रूरत नहीं
बुरा भी नहीं.. भला भी नहीं
इसीलिए वैसे ही यदि आप सच्चे हो..
और यह जगत आपको
दुःख पे दुःख ही पहुँचाए चले जाए
व्यक्ति आपो आप बैरागी हो जाएगा,
बैराग को उपलब्ध हो जाएगा...
उसको बैरागी होने के लिए
अलग से कोई क्रिया नहीं करनी होगी,
उसे किसी हिमालय मे तप करने की दरकार नही होगी.. या संसार को त्याग ने की ज़रूरत नहीं..
संसार के दिए कष्ट ही
उसके लिए तप का काम कर जाएंगे...
तब संसार मे रहके भी व्यक्ति,
संसार बहुत पीछे छुट जाएगा..
संसार मे रहके भी
वह संसार का ना रह जाएगा.. 😊
देखों ना प्रेम मे ही देख लो..
प्रेमी यदि बार बार
बार बार आपको बेवजह दुःख पहुँचा ता रहे..
महज़ बार बार आपको दुख ही पहुचा ता रहे..
आज नहीं तो कल
आपो आप आप उससे मुक्त हो ही जाओगे..
आपको detach होना नहीं पड़ेगा
आप detach हो ही जाओगे...
क्योंकि कहाँ ना
दुःख आपको मुक्त कर देता हैं
सुख ऋणी बना देता हैं...
के आपको भी वो लौटाना होगा
जो आपको मिल रहा हैं..
किंतु दुख मे आपको
किसी को दुख भी लौटाने की ज़रूरत नहीं....
तो अच्छा ही हैं
इसलिए दीप सुख से अधिक
दुख की आभारी रहती हैं..
सुख यूं भी छणिक हैं..
किंतु दुख जब आता हैं..
यदि आप ज़रा भी सजग रहे
किसी परम सुख का..
किसी परमप्रकाश का रास्ता खोल जाती हैं..
परम मुक्ति का मार्ग खोल देती हैं
उस पर मैं किसी flash back मे चली जाती हूं..
जब 17 वर्ष की दीप रात 8-9 बजे की अपने जॉब से घर लौटती हुई...
हाँ मेरी schooling 17 years में complete हो गई थी,
school का exam देते ही मैंने जॉब join कर लिया था
और मैं जॉब से लौट रही थी..
Amts bus मे बैठे..
खिड़की से बाहर झांकती हुई
आकाश की ओर ताकती हुई
अपने जीवन को आंकती हुई..
जीवन मे जो अच्छा प्राप्त हुआ
उसके लिए तो वो सदा से आभारी रही...
हाँ दुखों के लिए शिकायतें भी नहीं की
मग़र..
ये लम्हा..
पहली दफा जब उसने अस्तित्व से कहा था
प्रभु जीवन के हर सुख
के लिए भी धन्यवाद
और जीवन के हर दुःख
के लिए भी धन्यवाद .. 😊
क्योंकि सुख ने मेरे जीवन को सहज बनाया
और
दुःख ने मुझे एक बैहतर इंसान बनाया 😊
(यह तो याद नहीं उस दिन ऐसा क्या हुआ था,
मग़र ये लमहा हुबहु मेरे मन मे सदा के लिए छप गया था)
इस पर उसे अपनी प्राथनाएँ
सफ़ल होती सी मालूम हुई..
क्योंकि..
नादान बच्चे मन भी..
परमात्मा से महज़ सत्य
और एक बैहतर इंसान होने के
और कुछ नहीं माँगा... 😊
सो सत्य का सफ़र इतना आसान थोड़ी होता हैं..
तुमने मांगी ही इतनी महंगी चीज़
तो भुगतान तो करना होगा ना 😊
मोल तो अदा करना होगा ना..
मन आज बोला...
दुख और काटों के रास्ते से ही तो जीवन की असल हकीकत का दर्शन होगा..
और आज वही 17 वर्ष की दीप जाग कर फ़िर जैसे सामने आ गई और
वही शब्द दोहराती हैं...
प्रभु जीवन के सुख के लिए धन्यवाद..
जीवन के दुखों के लिए धन्यवाद... 😊


#analiensdiary 📖
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23.12.23
10.52pm