...

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तुम्हारे नाम
चलो एक काम करते हैं ,
ज़िन्दगी तुम्हारे नाम करते हैं
जो बीत गया,उसको बिसरा कर
एक नई शुरुआत करते हैं
जो मुरझा गए थे
जीवन के कुछ ख़ूबसूरत पल
मुरझाए खिज़ा के फूलों को
फिर से गुलज़ार करते हैं
नाम न लेंगे ज़ख्मों का,
शिकवों का,ना बिछड़ने का
हर ज़ख़्म पर अपने होठों से
मरहम का काम करते हैं
सूख गई थी ज़िन्दगी की
कुछ टहनियाँ ,शाख़ों पर
आओ उनमें बची नमी को
फिर से अपने नाम करते हैं
ढूँढा करते थे दरबदर
जो मुहब्बत कभी गलियों में
उस दबी मुहब्बत को
आज चलो एक ठहराव देते हैं
टूटकर बिखर जो गई थी
गुल अपने ही गुलिस्ताँ में
उस बिखरी गुल को
आज फिर गुलमोहर करते हैं
© गुलमोहर