...

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जाग उठा मन
अचानक मन महसूस किया
किसी ने छूकर उसे टटोला
अब जाग उठा मन और सोचा
आखिर वह कौन था जो मुझे टटोला।

अन्तरात्मा बोल उठी. मत डर
मै तेरी चेतना हूँ, जो तुझे झकोरा।
निज हित के लिए तू कितनों को लूटा
परिणाम बिना सोचे दूसरों का खून किया।

दूसरों का आँसू बहाकर खुद मौज किया
अपने माता-पिता का ख्याल न किया
भाई बहनों और परिजनों खूब सताया
जिन्होंने तुम्हें जन्म दिया उन्हीं को ठुकराया।

मन चंचल हुआ वह सोचने लगा
अंहकार में डुबकर मैंने यह क्या किया।
भीतर ही भीतर वह खूब पछतावा
आँखों से आँसुओं की धारा बह चला।

अचानक मन बोल पड़ा,
तेरे भीतर मै जाग उठा यही काफी है
तेरे कारण मैं तो मर ही गया था
मै मन हूँ और तू मानव यही तो बिडम्बना है।