...

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जीने का हक़
जीने का हक़ तुम
देती मुझको तो
मैं भी जी जाता
यूँ खून के
आँसू रुलाए
तुमने अब मुझसे
साहा नहीं जाता
हमे खत्म ही करना
था तो कतल कर
देती हमारा यूँ
तड़पा कर क्यूँ
चली गयी ना
जी पा रहे हैं
ना मर पा रहे
हैं बस यूँ ही
दिन गुज़ारे
जा रहे हैं |