**""ए सावन जो तू बरस गया""**
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जीवन गुजर रहा था ,सूना,,
आखिर जो तू बरस गया।
सुखे-सूखे खेतों में ,
गर्मी से तड़पे लोगों में ,,
आखिर तुझे तरस आ गया।
ए -बादल तू देर से ही सही,
झमाझम बरस गया।।
जब प्रेमी तरस रहा था,
महबूब के दीदार को।
किसान तरस रहा था ,
पानी की बौछारों को।
तब हौले -हौले यूँ बरसा तू ,,
जैसे प्रभु का आशीर्वाद हो।।
वन में तड़प रहे,थे जानवर,
घर में तड़प, रहा इंसान।
पानी में भी तड़प रही थी मछली,,
गर्मी ने मचाया कोहराम।।
अम्बर से बरस रहे, शोलों को,
तुमने जो शीतल किया।
उपकार किया बहुत हम सब पर,,
आखिर जो तू बरस गया।।
कवि अपनी कविता को तरसा,
सीप नीर-मोती बिन रूठा।
हरषाने जो तू ,हम सबको आया,,
जन-जीवन को फिर से खिला दिया।।
गीतकार ने फिर नए-नए स्वरों को चुनकर,
लो एक और गीत बना लिया।
इस सावन में जन-जन है झूमा ,,
ना जाने तेरी खुमारी में , कितनों ने घर बसा लिया।।
ऐ-सावन तुम सदैव ऐसे ही आना ,
आकर के सब-को हर्षाना।
मुरझाई हर कली को ,,
फिर बड़ने की नई राह दिखाना।।
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(Enjoy the Rainy Season)
© Rishav Bhatt