प्रेम अभिसार
रात का, प्रहर पर से पकड़ छोड़ने में अभी थोड़ी सी देर और थी ।
सूरज की किरणें क्षितिज पर पड़ने में, अभी थोड़ी सी देर और थी ।
फुल जो सूख चुके थे डाली पर, उसे झड़ने में अभी थोड़ी सी देर और थी ।
चल रही थी सबसे छिपाकर प्रेम अभिसार ।
पिघल रही थी धीरे-धीरे जमे हुए व्यथा...
सूरज की किरणें क्षितिज पर पड़ने में, अभी थोड़ी सी देर और थी ।
फुल जो सूख चुके थे डाली पर, उसे झड़ने में अभी थोड़ी सी देर और थी ।
चल रही थी सबसे छिपाकर प्रेम अभिसार ।
पिघल रही थी धीरे-धीरे जमे हुए व्यथा...