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ग़ज़ल
आज़ की पेशकश ~
दिल के राज़ बहुत गहरे हैं।
उन पर पहरे ही पहरे हैं।
कैसे कहें, अब कौन सुनेगा,
हम गूंगे है, वो बहरे हैं।
कौन यक़ीन करेगा किसपर,
हर चेहरे में सौ चेहरे हैं।
यूँ ही नहीं कश्ती डूबी है,
साज़िश में शामिल लहरें हैं।
घर जैसा अब कुछ भी नहीं है,
अब इसके, उसके कमरे हैं।
© इन्दु
दिल के राज़ बहुत गहरे हैं।
उन पर पहरे ही पहरे हैं।
कैसे कहें, अब कौन सुनेगा,
हम गूंगे है, वो बहरे हैं।
कौन यक़ीन करेगा किसपर,
हर चेहरे में सौ चेहरे हैं।
यूँ ही नहीं कश्ती डूबी है,
साज़िश में शामिल लहरें हैं।
घर जैसा अब कुछ भी नहीं है,
अब इसके, उसके कमरे हैं।
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