...

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मां का आंचल !
माँ...
तेरे आंचल से,
खेलते खेलते ना जानें !
कब पैरो पे खड़ी हुई....

तेरी ममता की छाँव में,
प्यारी सी लाड़ली बेटी !
ना जानें कब बड़ी हुई...

काला टीका लगाकर,
नज़रों से बचाती थी !
पंचतंत्रों की कहानी,
सुनाकर रोज़ सुलाती थी !

मैं कितनी भी,
बड़ी क्यों ना हो जाऊं.....' माँ '!
आज भी तेरे लिए,
छोटी सी गुड़ियां हूं...
© Mr."A"