...

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क्यों
आज मैं एक सवाल करना चाहती हूं?
बेटियों का घर बार पूछना चाहती हूं?
क्यों बेटियां ही पराई होती है?
क्यों बेटियों के जीवन मे ही लिखी जुदाई होती है?
बचपन बीतता है मायके में,
जीवन बीतता ससुराल में।
जब बात उठती बेटियों की घर की,
तो बात आ जाती बीच मझधार में।
जैसे जैसे वक़्त निकलता है
बेटियों का दिल सहम उठता है
माँ बाप और परिवार को छोड़
क्यों बेटियों को जाना होता है?
क्यों समाज जीने नही देता है
बेटियों के बड़े होते ही माँ बाप को चिंताओं से भर देता है
समाज के डर से
हर माँ बाप अपनी आंख के तारे को खुद से दूर कर देता है
क्यों बेटियों की किस्मत में ही लिखी जुदाई होती है?
क्यों बेटियां ही पराई होती है?



© Bhanu