...

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एक मुद्दत से घर जाएंगे
बुरे दिनों का दुःख नहीं, दिन हैं दिन तो गुज़र जायेंगे।
दुःख यह है तब तक कुछ दोस्त, दिल से उतर जाएंगे।

मेरे अजीजों के दुःख भी , सोचो कि कितने अजीब हैं।
यह सोच कर सो नहीं पाते, हम इस बार सुधर जाएंगे।

मैं इस डर से डरा हुआ हूं, ना पहचाना तो क्या होगा ?
आधीउम्र परदेस में कटी,आज हम अपने घर जाएंगे।

अब तू यारी रख या दुश्मनी, तुम पर छोड़ा फैसला।
लेकिन दोनों ही सूरत हम तेरी, सूरत बदल जाएंगे।

जवाब सोचने में वक्त ना गंवा, मेरा कोई सवाल नहीं।
अब तेरी भी क्या गलती, तुमने तो सोचा मर जाएंगे।

तुम्हारे ताने और बहाने, सुन कर उम्र गवां दी मैंने।
अब बिल्कुल खामोशी से, हम अपनी गज़ल गायेंगे।

© छगन सिंह जेरठी
© छगन सिंह जेरठी