अलविदा - तिलिस्मों की दुनिया
#शहरजीवनकाव्य
कुछ वक्त पहले तक,
मुझे कांच की चमकीली चीजें चाहिए थी,
छोटे छोटे डब्बों में,
कैद होने वाले बीजों भरी मिट्टी चाहिए थी,
मुलायम, रंगीन तकिए,
और खूबसूरत ढांचे का पलंग,
पर अब,
जब बुरी तरह कैदी बन गई हूं,
किरायों के इन मकानों में,
और बेबस पड़ी हुई हूं,
किताबों के बीच,
हाथ मल रही हूं,
पैसों की तंगी में,
तो एक खूबसूरत शहर के ख्याल में,
मुझे मेरा गांव याद आता है,
पापा के जगह,
बाबा का प्यार नजर आता है,
लोहे की इन...
कुछ वक्त पहले तक,
मुझे कांच की चमकीली चीजें चाहिए थी,
छोटे छोटे डब्बों में,
कैद होने वाले बीजों भरी मिट्टी चाहिए थी,
मुलायम, रंगीन तकिए,
और खूबसूरत ढांचे का पलंग,
पर अब,
जब बुरी तरह कैदी बन गई हूं,
किरायों के इन मकानों में,
और बेबस पड़ी हुई हूं,
किताबों के बीच,
हाथ मल रही हूं,
पैसों की तंगी में,
तो एक खूबसूरत शहर के ख्याल में,
मुझे मेरा गांव याद आता है,
पापा के जगह,
बाबा का प्यार नजर आता है,
लोहे की इन...