...

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कुछ तो अलग करना है.....
आगे बढ़ना है मुझे
नहीं अब रुकना है मुझे
ठान ली है अब ये मन में
मंजिल आने से पहले ना ठहरना है
मुझे...... क्यूंकि
कुछ तो अलग करना है मुझे

जानती हूँ ये राह नहीं आंसा
मुश्किलें हैं हर मोड़ पर
पर अब नहीं डरना है मुझे
सारी मुसीबतों से अकेले ही लड़ना है मुझे.....क्यूंकि
कुछ तो अलग करना है मुझे

मेरी मज़बूरियां अब ना लाना है
मेरे रास्ते में मुझे
ढाल इनको ही बनाकर
आगे बढ़ते जाना है मुझे
ठोकरों से अब ना घबराना है,
बेखौफ हो हर किसी का सामना करना है मुझे....... क्यूंकि
कुछ तो अलग करना है मुझे

हैं कुछ गुस्ताख़ नासमझ
जो खडे है राह में मेरी मुझको
भटकाने के लिए, इनसे भी बचकर निकालना है मुझे
अब ना भटकना है मुझे
खेल सारे ज़िन्दगी के सीखना है
मुझे....... क्यूंकि
कुछ तो अलग करना है मुझे

बहुत बर्बाद किया है मैंने अपने वक्त को दूसरों के खातिर
जिन्हे अपना समझा उन्ही से खाये हैं धोखे अब और ना खुद की ही नज़रो में गिरना है मुझे
गिर के वापस उठना है बिना रुके हर कदम चलना है मुझे
नहीं मिलती मंज़िल तब तक ना थकना
है मुझे.... क्यूंकि
कुछ तो अलग करना है मुझे
कुछ तो अलग करना है मुझे

_कल्पना@कल्पू _