...

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बहनें
आती हैं इस दुनिया में
बिलखती, खिलखिलाती हुई
पली बड़ी हैं नाज़ों से
कभी रोती, कभी मनाती हुई
है अद्भुत तिलिस्म जो सम्पूर्ण जीवन
एक धागे से बंधन में लाएँ
जिनकी एक मुस्कान की खातिर हम
जी-जी जाएँ, मर-मर जाएँ
बचपन के खेल घरों में जो
सौम्यता का दिया जलाएँ
स्व ह्रदय करुणा जल से
मानवता पावन कर जाएँ
ऐसी बहनों की बिदाई पर
क्यों भाई ये आँसू रोके है ?
मर्दों के उमड़ते भावों को
क्यों ज़ालिम ज़माना टोके है ?


हर समस्या हल जो करतीं
कभी मित्र कभी सखा बनकर
व्यथित मन की प्यास बुझातीं
अमरित बानी बरखा बनकर
जो पगली थाम भ्राता की उँगली
पूर्ण विश्व बाहों में भर लें
मानस की चौपाई जब गातीं
मृदु स्वर सब पीड़ा हर लें
ये माँझी जीवन नौका की हैं
माया का भवसागर तर लें
है नहीं इनका कोई भी सानी
आप चाहें तो प्रयत्न कर लें
चंचल पागलपन कहते तुम जिसको
मदमस्त पवन के झोंके हैं
ये साक्षात रूप हैं गौरी की
न भावनाओं के धोखे हैं।।

© AbhinavUpadhyayPoet