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उन पत्थरो का उजाला फकीर नहीं खींच सका
अंदाज़ ए मुहब्बत भी तासीर नहीं खींच सका
तेरी आँखों में अपनी तस्वीर नहीं खींच सका

बहा दिए हैं कतरे कितने लफ्जों के समंदर में
तेरे सामने कागज़ पर लकीर नहीं खींच सका
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