प्रिय सखी
हर प्रभात एक पीड़ा नई
हर रात द्वंद्व मिला हमको,
कुछ चैन नहीं इस दुनिया मे
सबक यही मिला हमको।
जो प्रीति मिली तुमसे मुझको
जग ने उसको समझा ही नहीं,
आखिर क्यों किया जगत ने यूँ
पृथक पृथक तुमसे हमको।।
माना कि अपने मार्ग पृथक
पर लक्ष्य हमारा एक सखी,
अभी चले हम भिन्न वेग से
पहुंचेंगे कल रोज सखी।
जो मजा संग चलने मे है...
हर रात द्वंद्व मिला हमको,
कुछ चैन नहीं इस दुनिया मे
सबक यही मिला हमको।
जो प्रीति मिली तुमसे मुझको
जग ने उसको समझा ही नहीं,
आखिर क्यों किया जगत ने यूँ
पृथक पृथक तुमसे हमको।।
माना कि अपने मार्ग पृथक
पर लक्ष्य हमारा एक सखी,
अभी चले हम भिन्न वेग से
पहुंचेंगे कल रोज सखी।
जो मजा संग चलने मे है...