40 पन्ने ✍️✍️✍️
40 पन्नों में लिखी अपने मन की बात
40 पन्नों में लिखी अपनों की हर घात
नारी मात स्वरुप है नारी जग का सार
लेकिन है कुछ बेहया दो धारी तलवार
कटकर इस तलवार से हारे अतुल उदास
घटिया निदिता जी करें मृत्यु पर परिहास
न्याय व्यवस्था लूट रही हर पीड़ित का माल
अनायास ही चला गया एक मइया का लाल
भ्रस्टाचारी जज कहे...
40 पन्नों में लिखी अपनों की हर घात
नारी मात स्वरुप है नारी जग का सार
लेकिन है कुछ बेहया दो धारी तलवार
कटकर इस तलवार से हारे अतुल उदास
घटिया निदिता जी करें मृत्यु पर परिहास
न्याय व्यवस्था लूट रही हर पीड़ित का माल
अनायास ही चला गया एक मइया का लाल
भ्रस्टाचारी जज कहे...