रचना
खुदा की रचना ने रचा है कुछ ऐसा की देख के अचरज़ होता है.......
जहा किसी का महल संगमरमर का है और कोई सड़को पर सोता है.....
जहा कोई गुमनाम है....
वही कोई आबरू संभाले हुए भी बदनाम है....
जहा दंगों में अब कोई जगह शमशान है...
तो कही फुलो का बगीचा भी वीरान है...
तेरे हर करिश्मे का अब हर कई सौदागर है !!
दुनिया तूने बनाई है और यहाँ कई दावेदार है...
आरम्भ भी तुम हो अंत भी तुम !
बिंदु स्वरूप हो और अनंत भी तुम!!
इंसान की फितरत बनाई तो थी तूने
पर बदल जायेगा बंदा किसी भी पल ये बताया नहीं कभी.....
रोता-रोता मांगता है तुझसे भुला देता है फिर.... पर तूने कभी जताया नहीं...
दुनिया बनाने वाले को लोग मानते तो है पर स्मरण नहीं करते
गुणों का गुणगान तो करते है पर धारण नहीं करते.....
जिस दिन वह तेरे गुणों को अपनाएगा
तब इंसान, इंसान कहलायेगा !!
© All Rights Reserved
जहा किसी का महल संगमरमर का है और कोई सड़को पर सोता है.....
जहा कोई गुमनाम है....
वही कोई आबरू संभाले हुए भी बदनाम है....
जहा दंगों में अब कोई जगह शमशान है...
तो कही फुलो का बगीचा भी वीरान है...
तेरे हर करिश्मे का अब हर कई सौदागर है !!
दुनिया तूने बनाई है और यहाँ कई दावेदार है...
आरम्भ भी तुम हो अंत भी तुम !
बिंदु स्वरूप हो और अनंत भी तुम!!
इंसान की फितरत बनाई तो थी तूने
पर बदल जायेगा बंदा किसी भी पल ये बताया नहीं कभी.....
रोता-रोता मांगता है तुझसे भुला देता है फिर.... पर तूने कभी जताया नहीं...
दुनिया बनाने वाले को लोग मानते तो है पर स्मरण नहीं करते
गुणों का गुणगान तो करते है पर धारण नहीं करते.....
जिस दिन वह तेरे गुणों को अपनाएगा
तब इंसान, इंसान कहलायेगा !!
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