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पिता जी को समर्पित🙏🙏🙏
है नमन उनको जिन्होनें देह का कण कण रचा है,
है नमन उनको जिन्होनें, देह घट सुन्दर गढ़ा है।
है नमन उनको कि जो इस देह सृष्टि में समाये,
है नमन उनको जिन्होनें, वृक्ष हमसे है उगाये।
है नमन उनको कि जो है, महासागर से भी गहरे,
है नमन उनको सदा जो आँधियों में अडिग ठहरे।
जो अनंत के पार तक है और हिमगिरी से भी ऊँचे,
ले सहारा स्कन्धों का, आसमां तक हम है पहुँचे।
है नमन उनको की जिन पर घर की सारी छत टिकी है।
है नमन उनको कि जिनसे घर की दीवारें बनी हैं।
जिनकें पद चिह्नों पर चलकर, हम सभी आगे बढ़े है,
सुन के जिनसे वीर गाथा, पहाड़ से दुर्गम चढ़े हैं।
है नमन उनको जिन्होनें निज रक्त से घर बाग सींचा।
है नमन उनको जिन्होनें, वंश की रेखा को खींचा ।
नमन मैं करता पिता को, जिनसे मेरा मैं बना है,
है नमन उनको की जिनका, हाथ आशीष से भरा है।
✍️ कवि की कलम से
है नमन उनको जिन्होनें, देह घट सुन्दर गढ़ा है।
है नमन उनको कि जो इस देह सृष्टि में समाये,
है नमन उनको जिन्होनें, वृक्ष हमसे है उगाये।
है नमन उनको कि जो है, महासागर से भी गहरे,
है नमन उनको सदा जो आँधियों में अडिग ठहरे।
जो अनंत के पार तक है और हिमगिरी से भी ऊँचे,
ले सहारा स्कन्धों का, आसमां तक हम है पहुँचे।
है नमन उनको की जिन पर घर की सारी छत टिकी है।
है नमन उनको कि जिनसे घर की दीवारें बनी हैं।
जिनकें पद चिह्नों पर चलकर, हम सभी आगे बढ़े है,
सुन के जिनसे वीर गाथा, पहाड़ से दुर्गम चढ़े हैं।
है नमन उनको जिन्होनें निज रक्त से घर बाग सींचा।
है नमन उनको जिन्होनें, वंश की रेखा को खींचा ।
नमन मैं करता पिता को, जिनसे मेरा मैं बना है,
है नमन उनको की जिनका, हाथ आशीष से भरा है।
✍️ कवि की कलम से
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