सच का आइना
सत्ता के साए में सच छिपा रहा,
मंदिर की घंटियां खामोश कर रहा।
असंख्य हाथ जोड़ते, आसमान तक पुकार,
हिंदुओं की ज़मीन पे, क्यों ये अत्याचार?
धर्म की दीवारें, नफरत से भर दीं,
शांति के वचन हिंसा में ढल दीं।
घर जल रहे, दिल छल रहे, न्याय है कहां?
आंखें पूछतीं सवाल, पर जवाब है कहां?
जो सहते हैं आज, कल क्या वो बोलेंगे?
चुप्पी की ये जंजीरें कबतक झेलेंगे?
धर्म का नाम लेकर, कर्म को मिटा दिया,...
मंदिर की घंटियां खामोश कर रहा।
असंख्य हाथ जोड़ते, आसमान तक पुकार,
हिंदुओं की ज़मीन पे, क्यों ये अत्याचार?
धर्म की दीवारें, नफरत से भर दीं,
शांति के वचन हिंसा में ढल दीं।
घर जल रहे, दिल छल रहे, न्याय है कहां?
आंखें पूछतीं सवाल, पर जवाब है कहां?
जो सहते हैं आज, कल क्या वो बोलेंगे?
चुप्पी की ये जंजीरें कबतक झेलेंगे?
धर्म का नाम लेकर, कर्म को मिटा दिया,...