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पन्ने डायरी के
तमाशा देखने आए हो, क्या लाए हो कही ज़मीर बेच के तो नहीं आए हो। क्या जरूरत थी बेचने कि खुद ही झोंक देते कृशानु मे, लगता है कि मुश्किलों से घबरा भाग आए हो।

इतने ही कमजोर थे तो क्यू उतरे ले खड्ग, तुम्ही तो कूदे थे
चलो मान लिया योद्धा नही, पर हार कब से प्यारी हुई तुम्हें
तुम तो वही हो न जो अंगौछे में जीतों के गुच्छे लिए चलते थे।

माना अकेले खड़े हो पर आसान रास्ते कि कल्पना कर तुम कब ही चले थे, देखा है तुम्हें इससे बुरे खण्ड से लड़ते तुम वही वीर हो न जो माटी से उठ कर मिट्टी तक न आ पाए हो।

खामोश क्यू हुए तुम तुम्हें तो बोलना आता था न, मार क्या इतनी भारी पड़ गई की तुम धागे तोड़ आए हो, क्या तुम इतने नादान थे जो खड़ से लड़ने आए हो, क्यू.. तमाशा देखने आए हो।

~ शिवम् पाल




© शिवम् पाल