...

6 views

कार्य सिद्ध हो जाता है
जब मन विचलित हो जाता है,
कठिन वक़्त लौट आता है।
और ख़ुद के अंदर के प्रश्नो से,
ख़ुद को घेरा तु पाता है,
तब एक बात समझ आती।
कितनी तेरी अभिलाषा है?
और एक अभिलाषा पाने में,
कितनों को तूने झांसा है!
और तुम्हें समझ जब आता है,
की कठिन बहुत है राह तेरी!
चलने को अब तैयार नहीं,
कहने को कोई साथ नहीं।
तब मस्तिकता खुलती है,
ईश्वर की आश लगाता है।
खुद का अस्तित्व बचाने को
अंतिम पुकार लगाता है।
समझ तुम्हें आने लगता,
की राह, संगत था गलत असर।
जो तूने किया वो था,
पाप, लालच, घृणा का घर।
तब मस्तिकता खुलती है
निश्छल मन तब शुद्ध होता है।
और मन जब होता शुद्ध अगर,
ईश्वर की बात फ़िर खिलता है।
और कठिन वक्तों में फ़िर,
विवेक मस्तिक में घुलता है।
फ़िर कठिन वक़्त लौट जाता है,
मन हर्षोउलाश को पाता है।
तब मन शुद्धि, ईश्वर भक्ति,
और पूर्ण पर्याश से हो मिश्रित,
हर कार्य सिद्ध हो जाता है।।
© A.K.Verma