...

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मृत्यु...
जोश है शौक, भी है! खामोशी है पर होश भी है! देखा एक सपना भी है ! सूरूप सा मदहोश भी है !!

खिली थी सूरत मस्त मगन चार चांद लगे कपड़ो से तिनका तिनका टूट गया जागा जब मे सपनों से

आगाज एक नई थी भोर वही थी बातें वही था शोर
चिकनी चुपडी बात सयानीसुनता सब पर रहता खामोश

बांधी है क्यो रिश्तों की डोर मृत्यु है तो आखरी छोर रूह को ना सुकून मिले ये दिक्षा तेरी या है प्रतिशोध

हे मालवा (भगवान) आग जलूं क्या करण करूँ कब्र गलू क्या उलझ गया मेरे हिस्से क्यासांस घुटे मेरे हाथ बंधे ना देख सकू...