...

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राह ज़िन्दगी की टेढ़ी- मेढ़ी..
ये राह ज़िन्दगी की टेढ़ी -मेढ़ी होती है||
मंजिल को पाने की चाह होती है,
लड़ कर थक कर बैठ जाते हैं,
आसान यहाँ ना कुछ होता है,
मालूम जब हमें तुम्हें सबको होता है,
तो फिर एक सवाल है
ये इंसान इन्हे उन्हें क्यूँ कोसता है?
अरे हो सकता है सब हो सकता है,
अगर संभव ना होता तो फिर ये इमारत
ये सड़के क्या ये सब अपने आप उतपन्न हो जाते हैं?उस उड़ने वाली चिड़िया कहाँ पता होता है कि आज भोजन मिलेगा या नहीं? भूख मिटेगी या नहीं?वो फिर भी अपने पंखों पर अपनी कोशिशों पर यकीन करती है,और हर रोज उम्मीदों की हौसलों की
उड़ान लिए उड़ती है,
देख जरा वो प्रेरणा देती है,
ये राह ज़िन्दगी की टेढ़ी मेढ़ी होती है||
© Kajal Mishra ✍️