12 views
“मेरा पुराना घर”
दरो दीवार भी अब
देखते हैं
बड़ी हैरत से
जब मैं लौट आऊँ
मुझे ये जानते हैं
या कि फ़िर ये
भूल बैठे
नज़र में सब नज़ारे
घूमते हैं
मैं ठहरूँ या
अभी ही लौट जाऊं
मेरे अहसास मुझसे
पूछते हैं
थे सब मानूस मुझसे
इस क़दर यूं
कि था लगता
ये मुझसे बोलते हैं
मैं पहरों तन्हा
रहती थी यहां पर
यही तन्हाई के
साथी मेरे थे
मगर जाना था
मुझको भी
यहां से
मुक़द्दर के
यही तो फैसले थे
है कुछ पाया तो
कुछ खोया भी
ही है
मगर खोने का
मुझ को दुख नहीं है
है बस अफ़सोस
इतना ही मुसलसल
क्यूं मुझको ये
नहीं भी
भूलते हैं
© Arshi zaib
देखते हैं
बड़ी हैरत से
जब मैं लौट आऊँ
मुझे ये जानते हैं
या कि फ़िर ये
भूल बैठे
नज़र में सब नज़ारे
घूमते हैं
मैं ठहरूँ या
अभी ही लौट जाऊं
मेरे अहसास मुझसे
पूछते हैं
थे सब मानूस मुझसे
इस क़दर यूं
कि था लगता
ये मुझसे बोलते हैं
मैं पहरों तन्हा
रहती थी यहां पर
यही तन्हाई के
साथी मेरे थे
मगर जाना था
मुझको भी
यहां से
मुक़द्दर के
यही तो फैसले थे
है कुछ पाया तो
कुछ खोया भी
ही है
मगर खोने का
मुझ को दुख नहीं है
है बस अफ़सोस
इतना ही मुसलसल
क्यूं मुझको ये
नहीं भी
भूलते हैं
© Arshi zaib
Related Stories
12 Likes
2
Comments
12 Likes
2
Comments