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घूँघट की आड़
आख़िर कैसे करूँ प्रियतमा,रूप सौंदर्य का तेरे बखान
एक घूँघट की आड़ में गोरी, तेरे वो बिखरे-बिखरे बाल
बड़ी सी बिंदिया लाल सजी थी, सुन्दर से ललाट पे तेरे
आँखों के कोरों पे दिखती, कजरारी सी धार ओ गोरी
अधरों पर मुस्कान सजी है, हिरनी सी बलखाय रही है
पूरनमासी के चाँद के जैसी, तेरी सूरत नज़र आ रही है
चूड़ी पायल खनक-खनक के, ले गई मेरे दिल का चैन
होंठ के ऊपर काला तिल, क़सम से ले गया मेरा दिल
चंचल चितवन वाली है वो, लगती फूलों की डाली है
पेड़ के पीछे खड़ी है ऐसे, स्वर्ग से उतरी हो अप्सरा जैसे
© ऊषा 'रिमझिम'
एक घूँघट की आड़ में गोरी, तेरे वो बिखरे-बिखरे बाल
बड़ी सी बिंदिया लाल सजी थी, सुन्दर से ललाट पे तेरे
आँखों के कोरों पे दिखती, कजरारी सी धार ओ गोरी
अधरों पर मुस्कान सजी है, हिरनी सी बलखाय रही है
पूरनमासी के चाँद के जैसी, तेरी सूरत नज़र आ रही है
चूड़ी पायल खनक-खनक के, ले गई मेरे दिल का चैन
होंठ के ऊपर काला तिल, क़सम से ले गया मेरा दिल
चंचल चितवन वाली है वो, लगती फूलों की डाली है
पेड़ के पीछे खड़ी है ऐसे, स्वर्ग से उतरी हो अप्सरा जैसे
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