...

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जग छोड़ कर बेहद खुशी हुई
तेरे आगे झुकते झुकते,
आख़िर इक दिन टूट गया।
रोज का झुकना ख़त्म हुआ,
यह सोच कर बेहद खुशी हुई।

इक अदृश्य जंजीर में जकड़े,
आधी उम्र काट दी मैंने।
अब तुम भी उससे ही बंधी हो,
यह देख कर बेहद खुशी हुई।

उठना चलना चलकर गिरना,
बस अपनी यही कहानी है।
दोनों का गिरना हद लांघ गया,
अब बैठ कर बेहद खुशी हुई।

सिर्फ श्वास का चलते रहना,
जीवन का प्रमाण नहीं।
चलते चलते यह भी थक गई,
अब रोक कर बेहद खुशी हुई।

कुछ सपने और कुछ उम्मीदें,
मुझको हर पल रोके रखते थे।
वे इस दुनियां के थे ही नहीं,
जग छोड़ कर बेहद खुशी हुई।
© छगन सिंह