...

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मद्धम मद्धम रौशनी
मद्धम मद्धम उम्मीद की
रौशनी जगी
जैसे अरसे बाद वो
स्वप्न से जगी
बरसों से सोया नसीबा
जैसे जागा हो
ये कैसी रौशनी है जगी
जिसमें जगत रचईता की खुली
गीता की किताब दिखी
बरसों से मेरी आँख
क्यों थी लगी
जो मुझे ये खुली
किताब न दिखी
इसी किताब से तो
मद्धम मद्धम रौशनी मुझे मिली
झोपड़ी भी न जाने क्यों
तब मुझे महल सी लगी
मद्धम ....
उम्मीद की रौशनी में जीये
जा रही थी
काँटों पे भी फूलों की
बगिया महकेगी
इक दिन तो उम्मीद की
कलियाँ खिलेंगी
इसी आस में तो
जिये जा रही थी
मद्धम मद्धम रौशनी से
झोपड़ी भी जगमगा गई
कैसे हुआ ये चमत्कार
वो तो यही सोचे जा रही थी
स्वप्न है या कोई हकीक़त
खुद को ही चुटकी काट
सोचे जा रही थी
एहसास जब हक़ीक़त का हुआ
ईश्वर को मद्धम मद्धम
रौशनी के लिए धन्यवाद ...