...

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मेरी अंतरात्मा की आवाज़
ना किसी के दिल में रहना चाहती हूँ,
ना किसी के शहर में रहना चाहती हूँ,
खूबसूरत गुलाब की सुगंध बनकर,
अपने ह्रदय को सुगंधित करना चाहती हूँ; खुद में रहना चाहती हूँ मैं।
ना किसी से बात करना चाहती हूँ,
ना किसी को देखना चाहती हूँ,
पंछी की तरह खुले आसमान में उड़कर,
प्रकृति के सौंदर्य को महसूस करना चाहती हूँ; खुद में रहना चाहती हूँ मैं। ना दुनिया के कायदे मानना चाहती हूँ,
ना अपनी छवि से किसी को मोहित करना चाहती हूँ,
सूरज की रोशनी की किरने बनकर,
अपने मन को उजागर करना चाहती हूँ; खुद में रहना चाहती हूँ मैं।
ना तो शोहरत कमाना चाहती हूँ,
ना तो धन पाना चाहती हूँ,
हवा का तेज़ बवंडर बनकर,
अपने सपनों की उड़ान भरना चाहती हूँ; खुद में रहना चाहती हूँ मैं।
ना किसी से कोई शिकायत करना चाहती हूँ,
ना किसी से कोई अपेक्षा रखना चाहती हूँ,
बारिश की मनमोहक बूंदे बनकर,
अपनी अंतरात्मा को आनंदित करना चाहती हूँ; खुद में रहना चाहती हूँ मैं।
ना किसी चीज का मोह रखना चाहती हूँ,
ना अंधविश्वास को मानना चाहती हूँ,
एक अनुभवी जौहरी की तरह बनकर,
ईश्वर को कण-कण में ढूंढ़ना चाहती हूँ; खुद में रहना चाहती हूँ मैं।

© Heena Punjabi