...

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मेरा बचपन.....
मैं दिन-रात सोता था
स्नेह के बीज मैं बोता था
दादा का इकलौता पोता था
ना जाने वो मौसम कैसा होता था

उस वक़्त हर-तरफ खुशी का माहौल पसरा था !!
मेरा बचपन उत्पात और हठखेलियों में गुजरा था !!


हर वक़्त सबसे हंसी ठिठोली
दिन भर खेलना कंचे की गोली
माँ का लगाना मुझे वो चंदन-रोली
हमेसा सुनने को मिलता दादी की बोली

आज तक समझ नहीं आया कि वो भी क्या माजरा था
मेरा बचपन तो उत्पात और हंसीयों- खुशीयों में गुज़रा था !!


मन में था उन्माद
कोई नहीं था अवसाद
सबके मिलते थे आशीर्वाद
ऐसा लगता था कि हूँ मैं आजाद

उस वक़्त बंधन में जरूर था पर कोई नहीं पिंजरा था !!
मेरा बचपन तो उत्पात के साथ साथ उन्मुक्त सा गुज़रा था !!


मन दर्पण था
सब कुछ अर्पण था
मुझे नहीं कोई तर्पण था
मेरा तो सर्वश्व ही समर्पण था

उस वक़्त तो मेरा मन मंदिर था, दिल एक खाली हुजरा था
मेरा बचपन तो उत्पात के साथ साथ अतिसम्पन्न में गुज़रा था !!


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© कुन्दन प्रीत