सफ़रनामा
मै निकली हूं उस सफ़र पर
जँहा मुसाफ़िर मुझे ढेरों मिले।। (2)
पूछी नहीं मैनें खैरियत,
पर हाल अपना वो सुना गए।
कुछ भीड़ का हाथ थाम चले,
कुछ भीड़ से भाग खड़े हुए।।
मै निकली हूं उस सफ़र पर
जँहा मुसाफ़िर मुझे ढेरों मिले।।
मंज़िल यहाँ सबकी अलग थी
ख्वाबों के सवालों मे उलझी।
जिन्दगी यहाँ लगभग नई थी।
राहों मे मुश्किलें बड़ी थी,
पर मज़िल मानों सामने खड़ी थी।।
मै निकली हूं उस सफ़र पर
जँहा मुसाफ़िर मुझे ढेरों मिले।।
कुछ ख़्वाब देखे इन आखों ने,
कुछ मुकम्मल इन...
जँहा मुसाफ़िर मुझे ढेरों मिले।। (2)
पूछी नहीं मैनें खैरियत,
पर हाल अपना वो सुना गए।
कुछ भीड़ का हाथ थाम चले,
कुछ भीड़ से भाग खड़े हुए।।
मै निकली हूं उस सफ़र पर
जँहा मुसाफ़िर मुझे ढेरों मिले।।
मंज़िल यहाँ सबकी अलग थी
ख्वाबों के सवालों मे उलझी।
जिन्दगी यहाँ लगभग नई थी।
राहों मे मुश्किलें बड़ी थी,
पर मज़िल मानों सामने खड़ी थी।।
मै निकली हूं उस सफ़र पर
जँहा मुसाफ़िर मुझे ढेरों मिले।।
कुछ ख़्वाब देखे इन आखों ने,
कुछ मुकम्मल इन...