3 views
मानसिक विडंबना
कर रहा कोई प्रगति पथिक ,तो बैर द्वेष न करो
जल रहा तेरा तन मन ,फिर भी आवेश न करो
न देख तो उसकी सफलता को सरलतम जानकर
न जाने कितने ठोकर मिले होंगे उसे राह में
काँटो पे चला होगा वो कर्म को प्रधान मानकर
राष्ट्र को तोड़कर तुम अलग प्रदेश न करो
मेहनत की मिठास का स्वाद तो होता है मीठा
कठिन परिश्रम की सिर्फ कल्पना करके देखो
एहसास होगा पैर के छालों का भूख में हाथ से फिसलता हुआ निवालों का
मिल जाएगा तुम्हें जवाब सारे सवालों का
जल रही हो घर मे जब दीप खुशियों की
किसी के आंगन में
तो आक्रोशित होकर शैतान का भेष न धरो
उस दीप से प्रकाशित लौ ,से उजाला हो जाएगा
तुम्हारा भी घर
किसी से कभी द्वंद द्वेष न करो।
© 𝓴𝓾𝓵𝓭𝓮𝓮𝓹 𝓡𝓪𝓽𝓱𝓸𝓻𝓮
जल रहा तेरा तन मन ,फिर भी आवेश न करो
न देख तो उसकी सफलता को सरलतम जानकर
न जाने कितने ठोकर मिले होंगे उसे राह में
काँटो पे चला होगा वो कर्म को प्रधान मानकर
राष्ट्र को तोड़कर तुम अलग प्रदेश न करो
मेहनत की मिठास का स्वाद तो होता है मीठा
कठिन परिश्रम की सिर्फ कल्पना करके देखो
एहसास होगा पैर के छालों का भूख में हाथ से फिसलता हुआ निवालों का
मिल जाएगा तुम्हें जवाब सारे सवालों का
जल रही हो घर मे जब दीप खुशियों की
किसी के आंगन में
तो आक्रोशित होकर शैतान का भेष न धरो
उस दीप से प्रकाशित लौ ,से उजाला हो जाएगा
तुम्हारा भी घर
किसी से कभी द्वंद द्वेष न करो।
© 𝓴𝓾𝓵𝓭𝓮𝓮𝓹 𝓡𝓪𝓽𝓱𝓸𝓻𝓮
Related Stories
4 Likes
2
Comments
4 Likes
2
Comments