...

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यही प्रेम है
प्रेम दीवानगी नहीं,
अपितु स्थिरता एवं परिपक्वता का प्रतीक है।
अनुभूति ही नहीं, यह उससे कुछ ज़्यादा है।

प्रेम निर्भरता नहीं,
अपितु शक्ति एवं आत्मनिर्भरता का संकल्प है।
अनुभूति ही नहीं, यह उससे कुछ ज़्यादा है।

प्रेम कहानी नहीं,
अपितु सच्चाई एवं वर्तमान का अंश है।
अनुभूति ही नहीं, यह उससे कुछ ज़्यादा है।

प्रेम इच्छा नहीं,
अपितु करुणा एवं परहितपरता का दान है।
अनुभूति ही नहीं, यह उससे कुछ ज़्यादा है।

प्रेम भोग नहीं,
अपितु योग एवं संजोग का आत्मिक रस है।
अनुभूति ही नहीं, यह उससे कुछ ज़्यादा है।

प्रेम मिलन नहीं,
अपितु त्याग एवं परिश्रम का संसार है।
अनुभूति ही नहीं, यह उससे कुछ ज़्यादा है।

प्रेम मुझमे है, हृदय में है।
प्रेम तुझमे है, आत्मा में है।
© Somanshi