माँ
Maa(माँ)
माँ
मेरे बचपन् को सवाँरा
अपनी कलम से उसे उकेरा
मेरी रच्नाओ मै तू है आजान्
मेरी कलम तुझ बिन बेज़ान्
2
अच्छे बुरे का पता नहीं था
राह मै चलना सीखाया
3
मेहनत का पाठ पढ़ाया
तो
लक्ष्य् की तरफ अग्रसर किया
4
कदम से कदम् मिलाकर
मुसीबतों से लड़ना बतलाती थी,
परछांई बनकर मेरी तू, कदम ताल करती थी
5
सफल होकर गुजरी जिस राहों से,
सफलता
बनकर खड़ी रही ।
मुस्कराती हुई दरवाजे पर
पहेरेदार् बनकर डटी रही
एक ट क् बनकर देखती रही
सपना तेरी हकीकत हुई
6
ज्योत् जो तूने जगाई थी
दिव्य बनकर वो निकली
' दिव्या' बनकर वो शक्ति
माँ तेरे चरणों मै
पुष्प आर्पित् कर दी
दिव्या मिश्रा की कलम से
माँ पर समर्पित मेरे विचार
माँ
मेरे बचपन् को सवाँरा
अपनी कलम से उसे उकेरा
मेरी रच्नाओ मै तू है आजान्
मेरी कलम तुझ बिन बेज़ान्
2
अच्छे बुरे का पता नहीं था
राह मै चलना सीखाया
3
मेहनत का पाठ पढ़ाया
तो
लक्ष्य् की तरफ अग्रसर किया
4
कदम से कदम् मिलाकर
मुसीबतों से लड़ना बतलाती थी,
परछांई बनकर मेरी तू, कदम ताल करती थी
5
सफल होकर गुजरी जिस राहों से,
सफलता
बनकर खड़ी रही ।
मुस्कराती हुई दरवाजे पर
पहेरेदार् बनकर डटी रही
एक ट क् बनकर देखती रही
सपना तेरी हकीकत हुई
6
ज्योत् जो तूने जगाई थी
दिव्य बनकर वो निकली
' दिव्या' बनकर वो शक्ति
माँ तेरे चरणों मै
पुष्प आर्पित् कर दी
दिव्या मिश्रा की कलम से
माँ पर समर्पित मेरे विचार