...

4 views

माँ
Maa(माँ)


माँ
मेरे बचपन् को सवाँरा
अपनी कलम से उसे उकेरा
मेरी रच्नाओ मै तू है आजान्
मेरी कलम तुझ बिन बेज़ान्

2
अच्छे बुरे का पता नहीं था
राह मै चलना सीखाया
3
मेहनत का पाठ पढ़ाया
तो
लक्ष्य् की तरफ अग्रसर किया
4
कदम से कदम् मिलाकर
मुसीबतों से लड़ना बतलाती थी,
परछांई बनकर मेरी तू, कदम ताल करती थी

5
सफल होकर गुजरी जिस राहों से,
सफलता
बनकर खड़ी रही ।
मुस्कराती हुई दरवाजे पर
पहेरेदार् बनकर डटी रही
एक ट क् बनकर देखती रही
सपना तेरी हकीकत हुई

6
ज्योत् जो तूने जगाई थी
दिव्य बनकर वो निकली
' दिव्या' बनकर वो शक्ति
माँ तेरे चरणों मै
पुष्प आर्पित् कर दी


दिव्या मिश्रा की कलम से
माँ पर समर्पित मेरे विचार