...

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कितना बदल गया इंसान
कितना बदल गया इंसान ,छुपा रहा अपनी पहचान ।
मोबाइल मे ही डूबा रहता ,छुट गई चेहरे की मुस्कान।।

बदल गये तेवर ,बदल गया स्वभाव ,बदल गई नजरें
अब तो वह मोबाइल की तरह किरदार बदल रहा है

सब जगह पर फैला कचरा ,बड़ा हो रहा प्रदूषण दानव ।
पहले ही था अच्छा ,जब यह था आदिमानव ।।

पेड़ पौधों को काट कर बना रहा शाही महल ,
पेड़ पौधे ना होने से फैलेगी जब बीमारी ,ना रहगे शाही महल ,बन जायेगा तु भिखारी

आने वाली प्रलय से फिर कौन तुझे बचायेगा ।
तेरा किया कर्म ,प्रलय बन तेरे आगे आयेगा ।।
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