...

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मन की खिडकी
सोच-समझ सब खो सी गयी थी
‌‌ अरमानों की बाढ़-सी सही थी।
सत्य-असत्य की सूझ नहीं थी
आशाओं की झड़ी लगी थी।
दिन-प्रतिदिन ढह सी रही थी
मूल्यों की जो कोठी खड़ी थी।
जब मन की खिड़की बंद पड़ी थी।

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