...

3 views

वक्त....
कुछ भी कहो बस मुझे अपना न कहो;
मैं रेत का दरिया हूँ मुझे मृगतृष्णा न कहो;
जिंदगी भंवर बनी है मेरे ही इशारों पर,
मतवाला हूँ मैं बस मुझे अपना सपना न कहो।

तारा मंडल में सैर करने, तुम निकले थे ख्वाब लिए,
बनकर विपत्ति मैं टूटा,तुम गिरे धरा पर अभिमान लिए;
सोचो कितना बलशाली हूँ,हाहाकार मचाता हूँ;
खुश हो जाऊं गर , तो फिर विजय सेज सजाता हूं।

और मैं वक्त हूँ सिर्फ मैं ही हूँ,मुझे खिलौना न कहो;
मुझसे मिलकर हीरा मिट्टी बनता,तुम मुझे विनाशक न कहो;
मेरी रंगत गर बदली खोलूंगा द्वार मंदर के,
पहुंचा दूंगा मंजिल तक बस तुम मुझे अपना उपाशक न कहो।
© pagal_pathik