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हाँ ...ये वक़्त मंथन का है !
हाँ ...ये वक़्त मंथन का है !
हालात का ये चक्र बहुत सी परतें दिखा रहा है !
कुछ शिकार हैं ! और कुछ शिकारी !
पिस रहा है प्रहरी !
कहीं गरीबी लाचार कर रही है ....!
ओछी मानसिकता भी तो द्वार पर खड़ी है !
बात तो सम्पूर्ण सुरक्षा की है,
फिर क्यों सब को अपनी -अपनी पड़ी है....?
हाँ ...ये वक़्त मंथन का है !
क्या सोच है तुम्हारी...?
धर्म, राजनीति और भ्रष्टाचार के व्यवहार से निकल कर देख,
जो गड्ढा खोद रहा है ,कल उसी में गिरने की है तेरी बारी !
ख़ुद को देश का नागरिक कह कर सुविधाएँ भी चाहते हो ।
मगर इस संवेदनशील समय में नियमों की धज्जियाँ भी उड़ाते हो ।
हाँ ....ये वक़्त मंथन का है !

परमजीत कौर