...

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मुझसे
करते हैं रश्क बिना देखे ही मुझसे,
सुनेंगे सुख़न क्या वो मेरे ही मुझसे?

मैंने रसाई में अपने रक़ीबों को खींचा,
क्या हाथ दोस्ती का वो नोचेंगे मुझसे?

कोशिशें की पामाल राहों पे चलने की,
ज़मीनें मेरे पांव तले की छीनेंगे मुझसे?

हैं किए जो सज्दे अब तक इबादत में,
महरूम न करें उनके सवाब को मुझसे.

था ज़माने में 'ज़र्फ़' कभी मैं कुछ ऐसा,
कि सीखे हैं फ़न कई नामवर भी मुझसे.
© अंकित प्रियदर्शी 'ज़र्फ़'

रश्क - ईर्ष्या, जलन (jealousness)
रसाई - मिलना जुलना (to mingle)
रकीबों - प्रतिद्वंदी, शत्रु (rival, enemy)
पामाल - पांवों से कुचला गया (treaded)
महरूम -अलग (deprive)
सवाब - पुण्य (results of good deeds)
फ़न - कौशल, विद्या (skill, knowledge)
नामवर - मशहूर, ज्ञाता (famous, expert)
एक और ग़ज़ल की पेशकश
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