...

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ग़ज़ल
रोक दो कोई तो ख़यालों को
नींद आती नहीं है रातों को

जाँ निकलती है इन अदाओं पर
यूँ सँवारा करो न बालों को

पास दिल-वालों के हूँ मैं हर-दम
दूर रखता हूँ होशियारों को

जिन इरादों से लग रहा हो डर
आज़माओ उन्हीं इरादों को

खुल ही जायेंगे बंद दरवाज़े
खटखटाते रहो किवाड़ों को

मेरे ही वास्ते किया है क़त्ल
मत सज़ा देना मेरे यारों को

वक़्त आने पे पूछना मुझसे
याद रखना सभी सवालों को
बन गई हैं जो ज़िंदगी का सबब
मत मिटाना हसीन यादों को

काम कुछ नेक भी 'सफ़र' करो तुम
कुछ सहारा दो बे-सहारों को
© -प्रेरित 'सफ़र'