...

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मैं बांध न लूंगा तुमको।
कोलाहल में बात हृदय की सुनने वाले।
ऐ पुष्प रोज मेरे उपवन में खिलने वाले।
तुम यूं ही किया करो चंद्रिका सी बातें,
ऐ चांद गगन में रोज रात मिलने वाले।
उषा की ज्योति, निशा में हो तुम मीत,
नक्षत्र रेख से मन-अंबर सिलने वाले।
खग-नयनों से मधु कलरव करते हो,
उर अंतर में नीड़ बना बसने वाले।
मेरी बेमतलब की बातों पे भी,
संग मेरे, मेरी खातिर हसने वाले।
सुनो पुष्प कहता हूं कि डरो नहीं!
मैं डाली से तोड़ना न लूंगा तुमको।
ऐ चंद्र दूर कितने हो तुम,...