...

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मेरे इष्ट 🙏🏻


हे निराकार!

तेरी जीत और तेरी ही हार।
या फिर कुछ नहीं जीत और हार।
मैं ही उलझ रही पहेली में बेकार।
वर्ना सर्वत्र सदैव ही खुला है तेरा द्वार।

तेरी ही कल्पना लीला में तू ही अनेक रूप धार।
उलझाता सुलझाता, खोता पाता अपना ही कल्पना संसार।
क्या कहें कैसे कहें तेरे लिए कुछ कहा भी न जाए।
जो भी कुछ कहे बस तेरी कल्पना के ही गुण गाए जाए।

कौन हो सकता है तेरी
कल्पना से दूर।
तेरी कल्पना में जीना तेरी कल्पना में मरना भरपूर।
कल्पना तो कल्पना ही है इसमें जीत हो या हार।
सत्य बस एक तू ही है हे मेरे निराकार!

जय महाकाल... !!!
© k.s