...

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सफ़र
टांग दी खूंटी पर ख्वाहिशें
जब से लाल चुनरिया ओढ़ी उसने
पल पल उड़ती थी जो उन्मुक्त हवा सी
बोतल में भरकर बंद कर ली पिया ने।

जब जब मुंह खोल कहना चाही अपनी बात
मर्यादा की कसम दे रोक दी सबने
गुड़िया सी सजी धजी डोलती सुबह से
खन खन चूड़ियों की चुभने लगी उसे ।

शादी से बड़ा बदलाव आया जीवन में
अपना चेहरा भी अब अनजाना लगता था उसे
सोचा था घर उसका होगा,जो चाहे कर लेगी
चलते फिरते सपनों को नए पंख देगी।

हमसफ़र मिलेगा चलेगा हमकदम बन
ये सब तो किताबी बातें थी उसके लिए बस
कहानियां जो पढ़ी थी वो सच न हुई
राजा तो मिला पर वो रानी न बनी ।

एक दिन फिर वो हिम्मत कर उठी
खूंटी से ख्वाहिशों की खोल दी गठरी
दहलीज को कर पार एक कठिन डगर चुनी
तोड़ सब बंधन मनपसंद सफर को चली ......

© Geeta Dhulia