...

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चलते जाना है
ये रात तो थके पंछियों के आराम का बहाना है,
मंज़िल पाने तक तो सबको बस उड़ते ही जाना है.

चांद चमकता उनकी ख़ातिर जो ढूंढते ठिकाना हैं,
कुछ हैं परवा नहीं करते, उन्हें चांद को सुलाना है.

रात भी टिकती नहीं ज़मीं पे, उसे सुबह को जाना है,
हमीं ज़मीं पे टिके कहीं क्यूं, हमें भी चलते जाना है.

थके हुए को गिराना हो तो, उसके लिए ज़माना है,
जो थक कर कोई गिर जाए तो उसे उठाते जाना है.

दुनिया डरे मुश्किलों से तो उसका काम डराना है,
तुम्हें तो बढ़ते जाना है और यही तराना गाना है.
© अंकित प्रियदर्शी 'ज़र्फ़'
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